Thursday, July 18, 2013

नगर प्रबंधन का विचार



कुछ समय पूर्व केदारखंड में आई बाढ़ की भीषण आपदा प्राकृतिक तो है ही, लेकिन यह सभ्यता जनित भी है। यह नदियों व भूस्खलन मार्गो में नगरों के खड़े किए जाने का परिणाम है। नगर और नदियों के संघर्ष में जागरूकता का पूर्ण अभाव पहले भी हम देख चुके हैं। आपदा प्रबंधन को लेकर अब तरह-तरह की चर्चाएं हो रही हैं, लेकिन नगरों का प्रबंधन हमारी चिंता से अभी भी नदारद है। यह जानकर आश्चर्य होता है कि नगर प्रबंधन अभी भी हमारे देश के विश्वविद्यालयों में अध्ययन-अध्यापन का विषय नहीं है। पर्यावरण, शहर नियोजन आदि विषयों पर अध्ययन की व्यवस्थाएं हैं, किंतु नगरों का प्रबंधन, जिसमें नगरों के विस्तार से लेकर साफ-सफाई की व्यवस्था, पेयजल व्यवस्था, शिक्षा, स्वास्थ्य, मार्ग व्यवस्था, करारोपण, व्यापार, औद्योगिक क्षेत्र, विधि व्यवस्थाओं तक का अध्ययन जरूरी है, पर यह कहीं भी नहीं पढ़ाया जाता। जब विषय ही नहीं है तो शोध कैसे होगा? वर्ष प्रतिवर्ष तेज होते नगरीकरण के बावजूद हमारे यहां नगर प्रबंधन गंभीर विषय नहीं बन सका है। वह देश जिसने दुनिया को सिंधु घाटी सभ्यता के रूप में प्रथम नगरीय सभ्यता दी हो वहां आज नगर व्यवस्था, म्युनिसिपल प्रबंधन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है। जब नगर प्रबंधन ही हम नहीं पढ़ते तो इस तरह की आपदाओं से निपटने की व्यवस्था का अध्ययन किस तरह संभव है। शहर एक, लेकिन एजेंसियां अनगिनत हैं। सब अपने-अपने तरह से विकास करने पर अमादा है। नगर प्रबंधन को मात्र नगर पालिकाओं द्वारा की जाने वाली साफ-सफाई, कूड़ा निस्तारण व्यवस्था तक सीमित मान लिया गया है।  इस दिशा में वर्ष 2011 में एक महत्वपूर्ण प्रयास कानपुर नगर निगम ने किया था। तब मैं कानपुर का नगर आयुक्त था। एडमिनिस्ट्रेटिव स्टॉफ कालेज, हैदराबाद की एक सेमिनार में चर्चा के दौरान मैंने प्रस्ताव रखा कि कानपुर नगर निगम अपने डिग्री कॉलेज में नगर प्रबंधन पर डिग्री एवं डिप्लोमा कोर्स चलाना चाहता है और हमें इसके लिए पाठ्यक्रम चाहिए। उस समय सबके लिए यह एक आश्चर्यजनक बात थी। बहरहाल, काफी मशक्कत के बाद यह जानकारी में आया कि हमारे देश के किसी भी विश्वविद्यालय में ऐसा कोई विषय है ही नहीं। केरल के किसी संस्थान में मात्र तीन माह का एक डिप्लोमा कोर्स मिला जो हमारे काम का नहीं था। आखिरकार यह जिम्मा कानपुर नगर निगम ने खुद लिया। एडमिनिस्ट्रेटिव स्टॉफ कॉलेज हैदराबाद ने वादा किया कि कानपुर नगर निगम द्वारा जो नगर प्रबंधन का पाठ्यक्रम कानपुर विश्वविद्यालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाएगा उसके लिए वह फैकल्टी सहयोग देने को तैयार है। एएनडी डिग्री कॉलेज की प्रधानाचार्या उमाकांती त्रिपाठी के नेतृत्व में नगर निगम ने तीन माह के रिकार्ड समय में पाठ्यक्रम निर्माण का काम पूरा कर प्रस्तुत कर दिया  आज नगर प्रबंधन, कानपुर विवि के प्रबंधन विभाग द्वारा संचालित एक पाठ्यक्रम है। इसके तहत डिग्री व डिप्लोमा कोर्स की व्यवस्था है। देश के किसी दूसरे नगर निगम ने नगर प्रबंधन की दिशा में ऐसी कोई पहल की हो, ऐसा ज्ञात नहीं। आज नगर पालिका और नगर निगम के स्कूलों में शिक्षा के लिए योग्य कर्मचारियों-अधिकारियों की कमी बनी हुई है। नगर निगमों में स्वयं भी नगर विकास प्रबंधन की सोच का अभाव है। नगर निगमों से जुड़े हुए बहुत से विभागों में भी नगर की आवश्यकताओं की समझ नहीं है। इसलिए हमें ऐसा विषय चाहिए था जो नगरों के विकास, स्थानीय निकायों के दायित्वों, नगर पालिकाओं के विधिक कार्यो, जन प्रतिनिधित्व की व्यवस्थाओं के साथ-साथ कर व्यवस्था, कूड़ा प्रबंधन, पर्यावरण के साथ ही नागरिकों में जागरूकता के पक्षों को समाहित कर सके। नगरों में विकास की धारा देर से पहुंची। जहां गुंजाइश मिली वहां लोग घर-बाजार बनाते चले गए। सरकारी जमीन, तालाब, नदी-नाले, नदियों के किनारे की जमीन पर बेखौफ कब्जा किया गया। अफसरों ने न जाने कितनी सरकारी जमीनों पर व्यक्तिगत नाम दर्ज करा दिए। कानून भी इतना कमजोर कि वह नोटिस की औपचारिकताओं से आगे बढ़ ही नहीं पाता। हर नगर में हजारों-हजार अवैध निर्माण हैं, उन्हें कोई तोड़ नहीं पाता। मजबूरन यह दायित्व आज मंदाकिनी, अलकनंदा, गंगा-जमुना को निभाना पड़ रहा है। केदारनाथ मंदिर के चारों तरफ जहां वन क्षेत्र होना चाहिए था वहां हमने धर्मशालाओं का बड़ा बाजार कायम कर दिया। कटते कगार और गिरते होटल हमारी इस अनियमित नगर व्यवस्था की देन है। नगर प्रबंधन के पाठ्यक्रम की एक प्रति मैने पिछले दिनों दिल्ली आइआइटी के वाइस चांसलर प्रो. पीबी शर्मा को सौंपी तब उनके उत्साह से यह अहसास हुआ कि शायद अब इस विषय पर राष्ट्रीय माहौल बनेगा। नगर प्रबंधन विषय तो प्रत्येक विश्वविद्यालय में पढ़ाया जाना चाहिए। प्रत्येक प्रदेश में आइआइटी के समान इसके संस्थान बनने चाहिए। जब बिजनेस मैनेजमेंट का अध्ययन प्रारंभ हुआ तो कक्षाएं खाली रहा करती थीं। लोगों ने मजाक उड़ाया कि व्यापार कोई पढ़ाने की चीज है, लेकिन आज एमबीए के बगैर आप कारपोरेट दुनिया की कल्पना नहीं कर सकते। नगर प्रबंधन ऐसा ही एक विषय होने जा रहा है। हमारे नगर विकास के इंजन हैं, लेकिन यह इंजन अब जाम हो रहा है। ऐसा सिर्फ इसलिए है, क्योंकि हमने आज तक नगर प्रबंधन को गटर का विषय समझा। इस विषय के न पढ़ने से हम उत्तराखंड में आज अनगिनत लाशों को देखने को मजबूर हैं।
(लेखक पूर्व सैन्य अधिकारी हैं)

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