Monday, October 6, 2014

काशी का सपना


काशी खंड में एक कथा है। अकाल इतना बड़ा था कि जीवन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ गया। ब्रम्हा जी ने महाराज रिपुंजय से निवेदन किया। महाराज जो दिवोदास के नाम से विख्यात हुए, ने एक बड़ी शर्त रखी। शर्त के अनुसार शिव सहित समस्त देवताओं ने काशी से स्वर्ग प्रस्थान किया। तब महाराज दिवोदास ने संन्यास छोड़ कर, काशी को राजधानी बनाया और आदर्श शासन व्यवस्था स्थापित की। देवता नहीं थे, लेकिन धर्म का साम्राज्य था। अर्थात आदर्श राज्य के लिए आवश्यक है कि सत्ता का मात्र एक केंद्र हो, विकास की शक्तियां विभाजित न हों। काशी में शिव हैं गंगा हैं विष्णु भी हैं। नगर तो जैनों, कबीरपंथियों और बौद्धों का भी है। हिंदू हैं तो कबीर के जुलाहे भी हैं। वाराणसी में सभी का योगदान है। चुनावों की गहमागहमी के बाद अब विकास के सपने हैं। लक्ष्य है पर्यटन विकास, उद्योग विकास, रोजगार वृद्धि, व्यापार को प्रोत्साहन, नगर सुधार व नगर विकास, शिक्षा, संस्कृति, पठन-पाठन आदि। वाराणसी के सर्वागीण विकास के लिए सड़कें, ड्रेनेज, सीवरेज, पर्यावरण, बाजार, मंडियां आदि अवस्थापना के महत्वपूर्ण मुद्दे हैं। चूंकि वादे बड़े हैं इसलिए जिम्मेदारी का ताज केंद्र के सिर आएगा। यदि लक्ष्य बड़ा है तो उसके अनुरूप संसाधन भी तो हों। महाराज दिवोदास व शिव की महान नगरी काशी आज मात्र एक जिला है। बुनकरों के लिए योजना, शिक्षा-संस्कृति के विकास की रूपरेखा, गंगा सफाई अभियान, आध्यात्मिक-सांस्कृतिक राजधानी, क्योटो के तर्ज पर आदर्श सांस्कृतिक नगर की सोच, कुल मिलाकर लगता है कि सौदा महंगा है। महारानी अहिल्याबाई होल्कर के बाद पहली बार वाराणसी के लिए इतना कुछ सोचा जा रहा है। वाराणसी नगर भक्तों, तीर्थयात्रियों के लिए बसा है, स्वयं अपने लिए नहीं। यह नगर कभी गंगा के घाटों तक सीमित था। तीर्थ क्षेत्र की वृद्धि के साथ वरुणा व असी नदियां नगर की सीमारेखा बनीं और नाम वाराणसी हुआ। आज आबादी का जबरदस्त दबाव है। नागरिक सुविधाएं, सड़क चौड़ीकरण की सीमाएं हैं, अत: नगर की सांस्कृतिक सीमा वरुणा असी के पार पंचकोस तक हो जानी चाहिए। रामनगर, मुगलसराय को व्यवस्थित उपनगरों का स्वरूप दिया जाना स्वयं वाराणसी के विकास के लिए जरूरी हो चुका है। बाबतपुर से सारनाथ मार्ग स्मार्ट सिटी योजना के लिए आदर्श है अन्यथा अवैध कालोनाइजरों के हाथ पड़कर विश्वस्तरीय संभावना का यह क्षेत्र बर्बाद हो जाएगा। इसी प्रकार मिर्जापुर मार्ग पर भी उच्च संभावना के क्षेत्र हैं। सारनाथ को विश्वस्तरीय उपनगर बनाने के लिए अलग से सारनाथ का मास्टर प्लान बनाने की आवश्यकता होगी। वाराणसी की अराजकता ओढ़ी हुई है। नागरिकों में अपने दायित्व की बड़ी स्पष्ट समझ है। वाराणसी के दिनों में मैं नगर निगम में बाबा हरदेव सिंह का डिप्टी था। नगर आयुक्त हरदेव सिंह ने अपील की कि बनारस के लोग नगर निगम के फुटपाथ, नालियों से अतिक्रमण हटाकर बरसात से पहले हमारी नालियांहमें वापस दे दें। नागरिकों का जैसे दायित्वबोध जागृत हो गया हो। लोगों ने पटी नालियां रात-रात भर खोदी। मलबा निकाला, ईंटें जोड़ीं और नालियां बनाकर निगम को वापस कीं। वह समय भुलाए नहीं भूलता जैसे कि कोई क्रांति आ गई हो। करीब 15 दिन बनारस नहीं सोया। पूरा बनारस काम पर था। मजदूरों का अकाल हो गया। कटिया के बल्ब, पेट्रोमैक्स की रोशनी में हजारों अनभ्यस्त हाथ एक हाथ में मोबाइल और दूसरे में फावड़ा लिए नालियां खोद रहे थे। जब पहली बार नगर में हाटमिक्स प्लांट से सड़कें बननी शुरू हुई तो बनारस के सबसे खराब सड़क वाले मुहल्ले को पहले चुना गया जो एक मुस्लिम बाहुल्य मुहल्ला था। भीड़भाड़ कम होने के बाद रात को काम शुरू हुआ। एशा की नमाज के बाद करीब 50 नमाजियों की भीड़ ने मशीन से बनती सड़क का नजारा देखा। इतना शोर मचा कि करीब 500 की भीड़ इकट्ठा हो गई। न जाने कहां से मालाएं लाकर दोनों ड्राइवरों को लाद दिया गया। इतनी रौनक, इतनी खुशी कि देखते ही बनता था। बनी हुई गर्म सड़क को हाथों से मुहल्ले वाले सहलाते थे। फिर यह हर मुहल्ले की कहानी हो गई। नगर निगम में धन की कमी थी। कर्मचारियों के वेतन की समस्या थी। विकास के बहुत से काम करने थे। सब कुछ आय के संसाधन बढ़ाकर किया गया। वह समय तो जैसे वाराणसी में हरदेव सिंह का शासनकाल था, जो हमेशा याद किया जाएगा। उन्हीं दिनों नई काशी योजना सोची गई। बाबतपुर रोड पर करीब पांच हजार हेक्टेयर जमीन का सर्वे प्रारंभ हुआ। लेकिन यह महत्वाकांक्षी योजना अवैध कालोनाइजरों और उनके सहयोगी नेताओं के षड्यंत्र का शिकार हो गई। वह इलाका जहां नई काशी योजना चलनी थी आज अवैध निर्माणों से पैक हो चुका है।आज वाराणसी पर राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीयफोकस है। काशी क्योटो की बातें हैं। वह सब किया जाना है जो पिछली कई शताब्दियों में नहीं हुआ। सांस्कृतिक राजधानियां मात्र इच्छा करने से नहीं बनतीं। राष्ट्र की जिजीविषा, जीवनी शक्ति को साध कर केंद्रित करना पड़ेगा। इस काशी में भारत का प्राण बसता है, यहां जो कुछ होगा वह काशी के नागरिकों के लिए नहीं संपूर्ण भारत के लिए होगा। क्या इस महत् लक्ष्य की पूर्ति नगर निगम, विकास प्राधिकरण, गंगा प्रदूषण इकाई या स्थानीय प्रशासन के बस की बात है? फिर गंगा व काशी के गुरुतर महत्व को स्थापित करने व एक विश्व नगरी तक स्तर बढ़ाने, आध्यात्म व ज्ञान का केंद्र बनाने का कार्य कैसे किया जाएगा? काशी का प्रबुद्ध तो राष्ट्र का भाग्य लिखता है उसकी जन्मकुंडली कोई और कैसे बांचेगा? प्रदेश अपने नगरों में पक्षपात नहीं कर सकता। अत: केंद्र की भूमिका मुख्य है। वाराणसी को केंद्रशासित प्रदेश का स्तर देते हुए नगर क्षेत्र को वैश्विक स्तर तक ले जाने का सफल प्रयास किया जा सकता है। रोम में स्थित विश्व के ईसाइयों की धार्मिक राजधानी वेटिकन सिटी नगर ही नहीं है, बल्कि एक संप्रभुतासंपन्न देश है। भारत के लिए वाराणसी की भी वही हैसियत है। यदि हमें वाराणसी को सांस्कृतिक राजधानी के रूप में विकसित करना है तो केंद्र शासित वाराणसी एक आवश्यकता है। वाराणसी के निकट स्थित नगर स्वत: ही सांस्कृतिक राजधानी प्रक्षेत्र की योजना के भागीदार बन जाएंगे। काशी ने जहां अत्यंत वैभव देखा है वहीं यह नगर अपने मंदिरों के ध्वंस का भी साक्षी है। इसने अपने समाज की प्रताड़ना देखी और उनके धर्म परिवर्तन की मर्मातक पीड़ा भी ङोली है। ऐसा कहां है विश्व में कि जहां शिव भी हों और बुद्ध भी। कबीर हों, रैदास हों और तुलसी भी। इतिहास के इस्लामिक और अंग्रेजी दौर का क्या कहें, आजाद भारत में भी कोई वाराणसी की परवाह करता नहीं दिखा। अब समय आ गया है। आज नेतृत्व भी है, सजग नागरिक भी हैं और दिशाएं भी स्पष्ट हैं। पतवार काशीवासियों के हाथ में है। सदियों के अंधकार के बाद वाराणसी का स्वर्णिम प्रभात उदय होने को है। 


(लेखक पूर्व सैन्य अधिकारी हैं)


3 comments:

  1. आपने सही वक्त पर देश क्योटो, वेटिकन सिटी और काशी के बाबत आंखे खोल दी हैं। अभी काशी को उसका हक नहीं मिला तो फिर बाद में उम्मीद करना बेमानी है। इस काशी पर हम कनपुरियों का भी उतना ही हक है, जितना काशी वालों का।

    ब्रजेन्द्र प्र सिहं।

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  2. नमस्कार महोदय ,
    आपके उस लेख को बहुत खोजने पर भी न पा सका जिसमें अतीत की उस घटना का जिक्र था जिसमें ये कहा गया कि कोई बौद्ध राजा लड़ता हुआ काश्मीर से गुजरा.... फिर किसी शैव मठ में गया व ह़िंदु न बनने दिया....फिर किसी फकीर के पास गया तो मुसलमान बनने दिया ....फिर उसने काफी प्रभाव डाला वहां के जनमानस में..
    इस घटना के बारे में पूरी जानकारी चाहिये .
    धन्यवाद

    गोविन्द गोपाल
    8938016112
    Srigovindgopal@gmail.com

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  3. नमस्कार महोदय ,
    आपके उस लेख को बहुत खोजने पर भी न पा सका जिसमें अतीत की उस घटना का जिक्र था जिसमें ये कहा गया कि कोई बौद्ध राजा लड़ता हुआ काश्मीर से गुजरा.... फिर किसी शैव मठ में गया व ह़िंदु न बनने दिया....फिर किसी फकीर के पास गया तो मुसलमान बनने दिया ....फिर उसने काफी प्रभाव डाला वहां के जनमानस में..
    इस घटना के बारे में पूरी जानकारी चाहिये .
    धन्यवाद

    गोविन्द गोपाल
    8938016112
    Srigovindgopal@gmail.com

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