Sunday, March 4, 2012

अग्निसाक्षी गोधरा


(दस वर्ष पूर्व , घटना के दूसरे दिन लिखा गया किंतु अप्रकाशित रहा यह लेख )

जो गोधरा में हुआ ऐसा ही कभी कर्बला में हुआ था । यजीद की फौजों ने हजरत इमाम हुसैन, उनके परिवार के सदस्यों, बच्चों तक को जीवित न छोड़ा था, तड़पा कर मारा था बिना पानी के प्यासे । इमाम हुसैन की शहादत मानव इतिहास में अन्याय के विरूद्ध संघर्ष की एक मिसाल है । लेकिन उन हत्यारे जालिमों ने भी महिलाओं को बख्श दिया था । गोधरा की घटना अपनी बहशीपने में कर्बला से भी आगे है । ट्रेन के बन्द डिब्बों में महिलाओं और बच्चों सभी को जलाकर राख कर दिया गया । अखबार में प्रकाशित जले हुये डिब्बों की तस्वीर से जैसे जले हुये शरीरों की बास उठती है ।

आखिर उनका कसूर क्या रहा होगा । क्या यही कि वे अयोध्या से आ रहे थे । फिर तो यह सिर्फ गोधरा ही नहीं कहीं भी हो सकता है । आतंकवाद का यह दृश्य हमें कहीं पर भी देखने को मिल सकता है । उन्हीं बोगियों को ही क्यों जलाया गया जिनमें तीर्थयात्री थे । बाकी ट्रेन के लोग जो आग की लपटों में घिरे हुये डिब्बों के मंजर देख रहे थे वे आखिर किस देश के वासी थे । वे क्यों मूक दर्शक बने रहे ? बतौर सहयात्री और बतौर हिंदोस्तानी उन लोगों पर कुछ तो जिम्मेदारियां थीं । सारा देश उनसे यह सवाल पूछेगा । और वे दो हजार लोग जिन्होंने गोधरा पर टे्रन घेर ली, उनका मुल्क कौन सा है ? उन्होंने किसके खिलाफ ऐलाने जंग किया है। जानवर काटने के धारदार हथियार, पेट्रोल बमों के जखीरों और दिल में जबरदस्त नफरत लेकर मासूमों पर हमला करने वाले ये कौन लोग थे ? उस कस्बे की आबादी के एक हिस्से में क्यों इस कदर नफरत की आग भड़की हुयी थी कि हैवानियत की सारी हदें पार हो गयीं ?

बताते हैं कि ट्रेन गोधरा से चली भर थी । पहले से सोची किसी योजना के तहत चेन खींच कर आउटर पर ट्रेन रोक ली गर्इ । किसी अफवाह से पागल हो रही बहशी, खून की प्यासी भीड़ ने डिब्बों को घेर लिया । पूछा भी होगा कि अयोध्या से आने वाले लोग किस कम्पार्टमेंट में हैं, एक आतंक का सहमा हुआ साया मडरा गया होगा । सिहर गये होंगे लोग कि न जाने क्या अनहोनी होने जा रही है । भाग कर दरवाजे बन्द किये होंगे । खिड़कियों से प्राण बचाने की भीखें मांगी गयी होगी । गिड़गिड़ाते हुये अपने देवताओं का वास्ता दिया गया होगा । बच्चों और माताओं ने भी हाथ जोड़े होंगे । लेकिन वे बड़े ठंडे दिमाग से अपना काम कर रहे थे, उन्होंने खिड़कियां तोड़ीं, पेट्रोल फेंका, आग लगायी सारे दरवाजे बाहर से बन्द रखे । आग की गर्मी और साक्षात मृत्यु को देखकर चीखने, चिल्लाने की आवाजें बढ़ गयी होंगी, चीखें भी दिलों को दहला देने वाली ! लेकिन उन्हें सुनने वाला कौन था ? शैतानों की भीड़ और हैवानियत का नग्न तांडव ! यह उनके लिये था, जो र्इश्वर के दरबार से आये थे । डिब्बे में बढ़ती हुयी आग ने इन्सानी जिस्मों को अपने आगोश में लिया होगा, तड़प कर घुट-घुट कर मौतें हुयी होंगी ।

बाहर यजीद की फौज के जालिम सिपाही अटटहास कर रहे होंगे । उन्होंने कभी कर्बला में यही किया था, यहां गोधरा में वो उससे कहीं आगे निकल गये थे । साबरमती एक्सप्रेस में जिन्दा जलाये गये लोग, औरतें, बच्चे किसी की गुनाहगार नहीं थे । उन्हें दूसरे के गुनाहों की, नफरत की सजा मिली और भी जो लोग गोधरा की घटना की प्रतिकि्रया झेलेंगे वो भी मासूम होंगे, उन्होंने भी कोर्इ कुसूर न किया होगा । एक मासूम के बदले दूसरा मासूम मारा जा रहा है। दंगों का यही दस्तूर है । अपराधियों को सजा देने का कोर्इ उपाय नहीं है । अदालतें हैं, आयोग हैं, बुद्धिजीवियों की जमातें हैं, ये सजायें नहीं दिला पाती । सुबूत नहीं हैं, अगर है तो मिल न सकेंगे । उनके अपराधों के दाग हमेशा की तरह मासूमों, निरपराधों के खून से धुलेंगे ।

हमें यजीद के सिपाहियों से कोर्इ शिकायत नहीं है वे अपनी तरबियत, अपनी तालीम, अपने तरीके से अपना काम कर रहे थे, हमें तो साबरमती टे्रन पर जिंदा बचे लोगों से शिकायत है, हमें तुम्हारा जवाब चाहिए । यह देश तुमसे जवाब की उम्मीद करता है । अगर तुम निहत्थे ही मुकाबला करते तो यह कोर्इ पहली दफा न होता, भारत के इतिहास में । तुम कोशिश करते तो बचा सकते थे तीर्थयात्रियों को । लेकिन नहीं, तुम ऐसा नहीं करोगे । तुम्हारी केार्इ जिम्मेदारी नहीं है । जब चुनाव हों तो जाकर वोट दे आना बस । तुम्हारे नाकारेपन ने एक ओर तीर्थयात्रियों को मरने दिया तो दूसरी ओर गुजरात के साथ शेष भारत के गली मुहल्लों में रहने वाले निर्दोष मुसलमानों को असुरक्षित कर दिया है । सांप्रदायिकता, वहशीपन का जुनून किसी एक धर्म, कबीले की जागीर नहीं है । वह सब कहीं है शैतान की तरह । वह गोधरा में भी थी और फिर सारे देश में भी तांडव करेगी । मात्र किरदार बदल जायेंगे । गोधरा की तरह गोधरा की प्रतिकि्रया में भी दूसरे बहादुरों के सामने फिर औरतों, बच्चों को प्राणों की भीख मांगनी होगी। पता नहीं कोर्इ सुनने वाला मिलेगा या नहीं । फर्क दरअसल हिन्दू मुसलमान का नहीं बलिक मारने और मरने वालों का है । आसमानों की दुछत्ती पर बसने वाले खुदाओं और देवताओं से कोर्इ पूछे कि उनके अलमबरदारों की तलवारें क्यों मासूमों की ही गर्दनें काटती हैं । जहां मुकाबला करना होता है, वहां कायरता दिखार्इ जाती है । असहाय, अपने परिवार के साथ रह रहे, साम्प्रदायिकता के माहौल से दूर रोजी-रोटी कमाने वाले निरपराधों को निशाना बनाया जाता है । गोधरा के दंगाइयों के आकाओं को मालूम था कि इस घटना की सारे गुजरात ही नहीं सारे देश में प्रतिक्रिया होगी । 

गोधरा के पेशेवर हत्यारे जानते थे कि इस देश में हत्याओं की तो सजा मिल जाती है, दंगाइयों को कभी सजा नहीं मिलती । इसलिए उन्होंने सामूहिक नरसंहार को दंगे का रूप दिया। एक कहानी बना ली गयी, जैसा कि अक्सर बना ली जाती है । मामला राजनैतिक रूप ले लेगा, बयान आयेंगे, सरकारों पर दोष दिया जायेगा, पुलिस का निकम्मापन बताया जायेगा । पेशेवर नेता बतायेंगे कि गलती ट्रेन में लोगों को जिन्दा जलाने वालों की उतनी नहीं है, जितनी प्रशासन की और सरकार की है ।
आखिर ऐसा क्यों किया गया होगा । ऐसा लगता है कि भीषण प्रतिकि्रया की उम्मीद में सरहद पार आकाओं के इशारे पर गोधरा पर तीर्थयात्रियों के डिब्बे जलाये गये होंगे । उनकी मंशा पूरी होती दिख रही है । प्रतिशोध का भीषण माहौल बनता हुआ दिखने लगा है । उनका उददेश्य बड़ा साफ है । भारतीय मुसिलमों में असुरक्षा का वातावरण बने, जिससे आर्इ0एस0आर्इ0 को अपना काम करना आसान हो । सीमापार से हमें बड़ी सफार्इ से बता दिया गया है कि वे और उनकी एजेन्सी भारत में क्या कुछ कर सकती है । यह एक चेतावनी भी है कि इससे भी बड़ा हादसा हो सकता है ।

जांचे बैठेंगी, आयोग बनेगा, सालों बाद कमोबेश हमें वही सब बताया जायेगा जो हम आज ही जानते हैं । हम सब सुनेंगे कुछ दिनों के बाद सब भूल जायेंगे । सब कुछ पहले की तरह हो जायेगा । जिंदगी, हिन्दुओं और मुसलमानों में थोड़ी दूरियां और बढ़ा कर, आहिस्ता आहिस्ता अपनी रफतार में आ जायेगी । नफरतों के कारोबारियों द्वारा फिर कभी किसी और डिब्बे या कस्बे के जलाये जाने पर हमें गोधरा फिर याद आयेगा । हम फिर मौके से फरार हो जायेंगे । रूकेंगे नहीं । जलते हुये डिब्बों, मकानों की तरफ हम वापस नहीं लौटेंगे । गोधरा का अग्निसाक्षी रेलवे स्टेशन और जले हुये यात्रियों व प्रतिशोध में मारे गये मासूमों की स्मृतियों की खातिर गोधरा स्टेशन का नाम बदलकर अग्निसाक्षी गोधरा कर दिया जाये ताकि सनद रहे और जो हुआ वह हमें हमेशा याद रहे ।  

12 comments:

  1. Polticians are not intrested in nor the general public.Public's opinion is slave of what media says.Politicians are there to exploit the situation the way they are benefited.

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  2. इस कृत्य के पूर्णतयः दोषी वे रहे जो सेक्यूलर का चोंगा ओढ़ कर मजहबी खिचड़ी पकाते रहते रहे
    उनके कुकृत्यों की क्या सजा होनी चाहिये अब ये विधाता ही तय करें
    जय सिया राम

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  3. ISI भारत में क्या कुछ कर सकती है यह एक चेतावनी भी है jispar dhyan n dene se इससे भी बड़ा हादसा हो सकता है jiskii rokthaam k liye hame satark rahna hai.

    How a sensetive n marmik lekh

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  4. sir bahut hi acha likha h aapney , dukh is bat ka h ki yaha sirf aur sirf kayarta ka hi path jantey h , jo bus khud ke liye jeetey aur martey h , unko kisi se kuch lena dena nahi h ...... aur aapki ye bat bilkul satya h ki गोधरा के पेशेवर हत्यारे जानते थे कि इस देश में हत्याओं की तो सजा मिल जाती है, दंगाइयों को कभी सजा नहीं मिलती । इसलिए उन्होंने सामूहिक नरसंहार को दंगे का रूप दिया। एक कहानी बना ली गयी, जैसा कि अक्सर बना ली जाती है । मामला राजनैतिक रूप ले लेगा, बयान आयेंगे, सरकारों पर दोष दिया जायेगा, पुलिस का निकम्मापन बताया जायेगा ...... ye bat wo jantey h isliye apni galtio ko dangey ka rup dete h , jissey ki unki galtiya chup jaye aur ram aur rahim ke bandey aapas me lad marey ...... qki dangey hona aam bat h yaha ...... kash ye dangey na hotey agar gandhi ne 1947 me sabhi ko alag kar diya hota ....lekin secularism ka path padhtey padhtey kitney aur masumo ki jan jayegi ....ye koi nahi bata sakta h .... jai hind , vandey matram

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  5. Lagta hai is Desh ke "secularo" ko apka ye lekh pasand nahi aaya isiliye itna marmik aur tarkik lekh prakashit na ho saka.Ayodhya ke development par likhe lekh ke baad apka dusra sabse accha lekh.

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  6. यह एक ऐसा सच है जिसे भारत की तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनीति ने आज तक स्वीकार नहीं किया। स्वीकारना तो दूर इस पर दो शब्द भी नहीं कहे.......आपने साहस करके जो कुछ भी लिखा है इसकी बहुत पहले से और सतत रूप से लिखे जाने की जरूरत थी........हालांकि इससे हमारी छद्मवादी सेक्यूलर राजनीति पर कोई फर्क पड़ने वाला नहीं है लेकिन हो सकता है कि लोगों की आत्मा इसे पढ़कर जागे....................इन शब्दों के लिए आपको साधुवाद

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  7. सहमे चेहरे,धुंआ ही धुंआ है ।
    कैसे बताएं,यहां क्‍या हुआ है ।।
    हर तरफ हैं चीखें ही चीखें ।

    लग गई किसकी बद्दुआ है ।।

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  8. Hamara desh aakhir kab tak in psudo secularist netaon ke bahkave me aata rahega jo saampradayikta ki naayi paribhasha dete hai aur kehte hai k samjhauta ex. ,malegaon aur ajmer me jo kuch hua vo bhi saampradayikta haimagar jo uske pehle hua vo kya tha?muslim tustikarad ke liye kisi bhi had tak ja sakte hai ye politician kintu itna avasya hai k desh ko nark me le jana chahte hai ye,sirf chan niji swarth ke liye,ye lekh padhkar bahut nirasha hui hai vyavtha aur uske tathakathit vyavasthapakon se.....

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  9. Lekh acha hai par paristhithi ko dhyan me rakh kar likha jata to acha hota. Dusre dibbbe ke passenger se ye apeksha karna ki wo S6 ke yatriyon ki raksha ke liye koodpadte, ye baat hajam nahi hoti hai. Pahli baat to ye ki unko pata hi na chala ho ki kya horaha hai. Neeche se pathraav karti bheed ko dekhkar sab log apne apne parivaar ki pahle raksha krne me lage honge tab tak sab anarth hogaya hoga. Dusri baat koi bhi budhimaan vyakti yadi wah prashikshit fouji naho to itne bade jansamooh ko nihatta lalkaarne ki himmat nahi juta payega.

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  10. इस लेख का मूल ही उन यथास्थितिवादी भारतीयों को चुनौती है जो प्रत्येक समस्या या कहिये आफत के समय चुप्पी साध जाते हैं......

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