Thursday, November 20, 2014

काशी क्यों बने केन्द्रशासित प्रदेश ?


एक विशिष्टता है वाराणसी की। यह विशिष्टता किसी पहचान की मुहताज नही है। यह हम देश के नागरिकों का दायित्व है कि इसे स्वीकार करें। अनादिकाल से एक मूल संस्कृति चली आती है। काशी ने उस सांस्कृतिक प्रवाह में अहम भूमिका अदा की है। उस समय विश्व में कोई और धर्म नहीं था। सभ्यता की उजास कहीं-कहीं दिखनी प्रारम्भ हुई थी। तब की दुनिया में सिर्फ एक सर्वशक्तिमान ईश्वर हुआ करता था। वेदों के बाद के काल में काशी धर्म संस्कृति का मुख्य पड़ाव बना। काशी अलग है। इसीलिये कहा गया कि यह नगरी शिव के त्रिशूल पर बसी है। सिर्फ बनारसी साड़ी, काशी की पहचान नहीं है। इसमें भदोही की कालीन और देवकीनंदन खत्री की चंद्रकांता संतति की भावभूमि आज का चंदौली भी आता है। पयर्टन विकास की यहाॅ असीम संभावनाएॅ है। कल्पना करें कि काशी सारनाथ सड़क मार्ग से कम्बोडिया, बैंकाक से जुड़ गया है। अब सोचे कि बुद्विस्ट यात्रियों की संख्या में कितनी अभिवृद्धि होगी ? विकास के अनेक आयाम अभी सोचे भी नही गये है। 

शूलटंकेश्वर से गंगा अगर उत्तरमुखी होती है तो शिव काशी के लिये ही। कोई और कारण नही था। भगीरथ चाहते तो सीधे निकल जाते। पर नहीं, वे ठिठके, रूके फिर उत्तर की दिशा में चलते हुए विश्वेश्वर के निकट क्षणमात्र को रूके, प्रणाम किया, बढ़ गये। पीछे गंगा का वेग था। लेकिन गंगा रूक गयी, उन्हें शिव को स्पर्श जो करना था। कगार कटने लगे। चीख-पुकार मच गयी। ढोर-ढंगर भागने डूबने लगे। आर्तनाद सुनकर नये बन रहे तट पर शिव का आना हुआ। चरण-स्पर्श पाकर आहलादित गंगा पुनः भगीरथ के पीछे चल पड़ी। भगीरथ इसके बाद मंथर गति से चले। परिणामतः गंगा का पार चैड़ा होता गया।

आखिर हम अकिंचन किस प्रकार काशी का वैशिष्ट्य स्वीकार करे ! काशी धर्म संस्कृति की नगरी सदा से रही है। तब भी थी जब 1193 ई0 में कुतुबुद्दीन ऐबक ने हजारो मठ-मंदिरों को ध्वस्त किया और हजारों काशीवासियों का बलपूर्वक धर्मपरिवर्तन कराया। उस गहन निराशा और अंधकार के काल में भी काशी की मूल जिजीविषा मृत नहीं हुई, संस्कृति की लौ जलती रही। विध्वंस होते मन्दिरों की मूर्तियों  को ब्राहमण, अहीर, मल्लाह और बहुत से काशीवासी लिये भागते रहे, मरते रहे। कोई इतिहासकार उन बलिदानों की कथा नहीं कहता। वह श्यामवर्णीय ब्राहमण जो ध्वंस हो रहे विश्वेश्वर मन्दिर से शिवलिंग लेकर भागा, उसे थोड़ी ही दूर पर मुगल घुड़सवारों ने भालों से बींध दिया। रक्तरंजित शिवलिंग से ब्राहमण का शव हटा शिवलिंग को चार बलिष्ठ अहीर युवक ले भागे। दो मारे गये। फिर तो यह बलिदानों की रिले रेस बन गयी। ये घटनायें लोककथाओं में जीवित हैं। फिरोज शाह तुगलक के जमाने मे जब काशी में कोई मंदिर बचा ही नही था तब भी यह हमारी धर्म संस्कृति की नगरी रही है। अक्सर मुस्लिम बादशाहों ने मंदिर तोड़े, समाज को तोड़ा। मंदिरों को किसी तरह जोड़-जाड़ कर पूजा अर्चना होती रही लेकिन जो समाज टूटा वह वापस नही लाया गया। कबीर उसी टूटे समाज की अभिव्यक्ति है जिसे कर्मकाण्डी ब्राहमण समझ ही नहीं सके। उन्हें अस्वीकार कर दिया गया। जहाॅ चार्वाक तक का दर्शन स्वीकृत है वहाॅ कबीर अस्वीकृत कर दिये गये। इस अस्वीकार ने विद्रोही कबीर को काशी का सच्चा प्रतिनिधि बनाया है। वरना वे क्यों घाट की सीढि़यों पर लेट ब्रहम वेला में गुरू रामानंद की प्रतीक्षा करते। प्रायः सत्तायें काशी की विरोधी रही है, अंग्रेजों ने अपने जमाने में नगर का सारा सीवर गंगा में खोल दिया। यह आस्थाओं पर परोक्ष हमला था। काशी ठगों लुटेरों गुण्डों का शहर भी बना। यहाॅ तक कि गुण्ड़ों को महिमांडित करने का भी दौर आया।

काशी के कष्ट को मराठों ने महसूस किया। मुगल साम्राज्य के पराभव के बाद इंदौर के शासक मल्हारराव होल्कर के शासन काल में काशी के धार्मिक सांस्कृतिक वैभव पुनः स्थापित करने की प्रक्रिया आरंभ हुई जो महारानी अहिल्याबाई होल्कर के काल में शिखर पर पहुॅची। तब तक अंगे्रजो का काल आरंभ हो जाता है। गुलामी के इस दूसरे दौर में अंग्रेजों ने मंदिरों को बक्श दिया। महारानी अहिल्याबाई का काल काशी के लिये संजीवनी बना लेकिन बहुत कुछ करना रह गया था। 

वाराणसी को केन्द्रशासित राज्य बनाने की माॅग, सदियों से हुये अन्याय के प्रतिकार के साथ-साथ काशी की विशिष्टता के स्वीकार का उद्देश्य भी लिये हुये है। कई मित्रों ने कहा यह असंभव है। इसके लिए, न राज्य न केन्द्र सरकार, कोई तैयार नहीं होगा। हो सकता है। लेकिन अन्य केन्द्रशासित राज्य कैसे बने हैं यह भी देख लिया जाये। 10 लाख आबादी का चंडीगढ़ केन्द्रशासित राज्य सिर्फ इसलिये बन गया जिसमें पंजाब हरियाणा के बीच स्वामित्व के विवाद को स्थगित किया जा सके। बहरहाल इस कदम ने एक नये बसाये गये योजनाबद्ध नगर को एक अलग पहचान दी है। पाॅडिचेरी जो 1947 से पहले फ्रेंच कालोनी था, अपनी फ्रेंच संस्कृति, वास्तु स्थापत्य की विशिष्टता की रक्षा के लिये केन्द्रशासित बनाया गया। यदि तुलना करें तो हम पायेंगे कि वाराणसी को केन्द्रशासित राज्य बनाने का तर्क इन दो राज्यों के लिए दिये गये तर्कों की तुलना में कही अधिक सबल है। फ्रेंच परम्परा की रक्षा के लिए यदि हम पाॅडिचेरी को केन्द्रशासित राज्य बना सकते हैं, तो काशी की विशिष्टता की रक्षा के लिए यही कार्य किया जाना सम्भव क्यों नहीं होगा ? काशी तो एक सभ्यता का केन्द्रबिंदु है। दुनिया के प्राचीनतम नगरों में से एक, विश्व के तीन महान धर्मो का केन्द्र यह गंगा व शिव का स्थान भी है। वेटिकन सिटी, मक्का शरीफ तो एक एक धर्म के केन्द्र है। यहाॅ तीन धर्मो के उद्गम है। 

अब उम्मीदें जगी है कि काशी धर्म, संस्कृति, कला ज्ञान की दिशा में आगे बढता हुआ आध्यात्मिक गुरू का स्थान ग्रहण करे। उम्मीदें तब भी जगी होगी जब मुगलों के बाद मल्हारराव होल्कर का शासन आया था। फिर 50 वर्षो तक अहिल्याबाई का शांतिपूर्ण उपलब्धि भरा शासन रहा। अंग्रेज आये फिर अंगे्रजों के बाद आजाद भारत में सब कुछ सेकुलर हो गया। आज राजनैतिक दिशा परिवर्तन के साथ काशी पुनः हमारी आशाओं का केन्द्र बन गई है। ये उम्मीदें सिर्फ नाली, सड़क, खड़जें व नागरिक सुविधाओं की मात्र नहीं है बल्कि उस सांस्कृतिक वैभव के लिये है जो काशी ने गुप्तकाल के बाद फिर कभी नही देखा। ये उम्मीदें उन कारपोरेट ठेकेदारों के आगमन की नहीं है जो किसी जिन्न की तरह सड़कें फ्लाईओवर, पुल बना डालेगे व नये नगर बसा देगे। बल्कि उम्मीदे शेष भारत की है जो काशी को अतिशय सम्मान व श्रद्धा से देखता है। नाना फड़नवीस ने टीपू सुलतान के विरूद्ध अंग्रेजों का साथ इसलिये दिया कि  विश्वनाथ मंदिर का पुर्ननिर्माण होने देने में अंग्रेज सहयोग दें। शिवाजी अपने राज्याभिषेक के लिये काशी से गागा भट्ट को बुला भेजते है। शेष भारत काशी और शिव को एकाकार एकरूप देखता है। 

अगर काशी को वैशिष्ट्य प्रदान करने के लिये इसे केन्द्रशासित प्रदेश का स्तर दिया गया तो यह काशी पर कोई एहसान न होगा। बल्कि काशी को उसका स्तर प्रदान करने की दिशा में एक प्रयास होगा। अगर ऐसा हुआ तो बहुत सी बातें  अपने आप बदलनी आरंभ हो जायेगी। काशी के प्रति नये सत्ता प्रतिष्ठान की सोच में परिवर्तन उस सांस्कृतिक पुर्नजागरण की दिशा को इंगित करेगा, जो राष्ट्र का भविष्य है। एक सज्जन ने यह भी कहा अरे यह तो बर्रे के छत्ते में हाथ डालने जैसा है। अगर और भी माॅगें उठी तो कहाॅ-कहाॅ केन्द्रशासित प्रदेश बनाये जायेगे। बड़ा आश्चर्य हुआ कहीं से आज तक कोई माॅग उठी है क्या ? सामान्यतया राज्य सरकारे इस प्रकार की माॅगों की विरोधी होंगी तो माॅग करने वाले लोग कौन होंगे ? कहा गया अमृतसर गोल्डेन टेम्पल के लिये माॅग उठी तो। अमृतसर तो पंजाब राज्य का हमेशा अंग रहेगा। पंजाब इतना बड़ा है भी नहीं। माॅग इसलिये नहीं उठ सकेगी क्युकी काशी से किसी भी नगर की तुलना संभव ही नही है। बहुत से तीर्थ है किंतु सांस्कृतिक राजधानी तो एक ही होगी और वह स्थान सिर्फ काशी के लिये सुरक्षित है। 

आर0 विक्रम सिंह
पूर्व सेनाधिकारी

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