Friday, January 31, 2014

समाधान की सरहदे


जमी हुई झीलों और बर्फबारी के खुशगवार मौसम में गत दिनों कश्मीर की चर्चाएं अचानक गरमा गईं। प्रधानमंत्री ने अपनी विदाई प्रेस वार्ता में मुशर्रफ के जमाने में कश्मीर को लेकर समझौते की जिस संभावना का जिक्र किया वही हलचल मचाने के लिए काफी था। साथ ही कश्मीर पर प्रशांत भूषण के आत्मनिर्णय जैसे बयानों ने हमें नेहरू युग की पुरानी यादें फिर ताजा करा दीं जब जनमत संग्रह का प्रस्ताव लेकर हम खुद संयुक्त राष्ट्र की चौखट पर दस्तक दे रहे थे। किसी से पीछे न रहते हुए उमर अब्दुल्ला ने पाकिस्तानी पत्रकार के इंटरव्यू में कह दिया कि कश्मीर समस्या का एकमात्र समाधान तब होगा जब सरहदें अर्थहीन हो जाएं। उन्होंने यूरोपियन यूनियन जैसी मुक्त व्यापार व्यवस्था की वकालत की। सीमा व्यापार की बानगी यह है कि पाकिस्तान से बादाम की खेप में करोड़ों की हेरोइन भेजी जा रही है। सीमाएं निष्प्रभावी होने की बात का तात्पर्य यह हुआ कि कश्मीर किसी का नहीं है। ऐसा मजाक 1947 से ही चल रहा है। 1947 में कश्मीर के जनमत संग्रह के प्रस्ताव के पीछे नेहरू की सोच शायद यह रही हो कि वह लोकतांत्रिक युगपुरुष के रूप में राष्ट्रीय सीमाओं का अतिक्रमण कर अंतरराष्ट्रीय महानताओं की ओर अग्रसर हो जाएंगे। भारत उनकी अंतरराष्ट्रीय महात्वाकांक्षाओं का स्प्रिंगबोर्ड बना। उनकी इस वैश्विक उड़ान का जहाज 1962 में जब चीनी चुनौती की सख्त जमीन पर आ गिरा तब कहीं जाकर आदर्शवाद की यह यात्र समाप्त हुई। तब तक ङोलम में बहुत पानी बह चुका था। जिस दौर में दुनिया के देश अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता दे रहे थे, हमने विश्व नेतृत्व के आकाश को अपना लक्ष्य बनाया। हम दुनिया में शांति के बड़े ठेकेदार बनने लगे और हमारे पैरों के नीचे से जमीन सरकती गई। कश्मीर किसका है? यह सवाल जिसे बहुत पहले दफन हो जाना चाहिए था, आज भी जिंदा है। सवाल इस मुल्क से है कि कश्मीर हमारा जुनून क्यों नहीं बना? नेताओं द्वारा अक्सर की जाने वाली घोषणा कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, की असलियत क्या है? अभी कल ही विधिवेत्ता एवं लेखक एजी नूरानी ने इस्लामाबाद में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय कार्यशाला में कश्मीर में जनमतसंग्रह का पक्ष लिया है। इन्होंने बहस को वापस वहीं पहुंचा दिया है जहां से हम चले थे। जनमत के भय के कारण अभी तक संभव नहीं हो सका वरना हमारे नेता कश्मीर को कब का बांट चुके होते। 1कश्मीर का भारत में हुआ विलय अन्य 563 रियासतों के भारत में हुए विलय से भिन्न नहीं था। जब न महाराजा हरी सिंह और न ही शेख अब्दुल्ला पाकिस्तान का हिस्सा बनना चाहते थे तो विशेष दर्जे या धारा 370 का औचित्य ही क्या था? अक्टूबर 1947 में श्रीनगर के निकट शालातेंग में भीषण हार के बाद भाग रहे कबायली हमलावरों का पीछा करती सेनाओं को उड़ी में रोक दिया गया। यहीं से हमारी कश्मीर समस्या की शुरुआत हुई। एक जनवरी, 1948 को अगर हम संयुक्त राष्ट्र न गए होते तो कश्मीर उसी तरह मुक्त हो जाता जैसे बाद में हैदराबाद, फिर गोवा को मुक्त कराया गया। एक वर्ष बाद यानी एक जनवरी 1949 को जब युद्ध विराम की घोषणा हुई, उस वक्त भी शेष कश्मीर के मुक्ति के युद्ध में सेनाएं विजय पथ पर थीं। साक्ष्यों से स्पष्ट होता है कि गवर्नर जनरल माउंटबेटन का ब्रिटिश एजेंडा यह था कि कश्मीरी पर्वतीय क्षेत्र, विशेषकर गिलगिट बालतिस्तान पाकिस्तान के कब्जे में रहे। शीत युद्ध के उस प्रारंभिक काल में रूस-चीन की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए कश्मीर के पर्वतीय क्षेत्रों में सैन्य अड्डे स्थापित करने का अमेरिकी-ब्रिटिश का उद्देश्य समझ में आता है। अगर पाक अधिकृत कश्मीर भी आजाद हो गया होता तो यह संभावना समाप्त हो जाती और अमेरिकी निगाह में कश्मीर और फिर पाकिस्तान भी, सामारिक-राजनीतिक दृष्टि से महत्वहीन हो गया होता। उस स्थिति में कश्मीर समस्या की बुनियाद ही खत्म हो गई होती। पाक अधिकृत कश्मीर के बने रहने से कश्मीर आज दो भागों में विभाजित है और कश्मीर समस्या कायम है।1बहरहाल, आगे हम क्या कर रहे हैं? प्रारंभ से ही हमारा रुख रक्षात्मक रहा है। जब पाकिस्तान कारगिल की चोटियों पर कब्जा करता है तो उसे परवाह नहीं होती कि हम परमाणु शस्त्र संपन्न देश हैं, लेकिन जब हमारी सेनाएं अपनी भूमि खाली कराने के लिए एलओसी के पार जाना चाहती हैं तो हमारे राजनेता डर जाते हैं कि पाकिस्तान के पास तो परमाणु शस्त्र हैं। हमारी राजनीतिक बिरादरी तो अब मांग भी नहीं करती कि पाक अधिकृत कश्मीर खाली किया जाए, लेकिन देश की जनता से कहा जाता है कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। इच्छाशक्ति के बगैर कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग कहते रहना फकत राजनीतिक लफ्फाजी बन जाती है। सत्ताएं बदलती भी हैं। एक जमात जाती है और दूसरी आती है, लेकिन हमारी कायरता बरकरार रहती है, उसमें कमी नहीं आती। 1971 युद्ध में हम विजयी देश थे, लेकिन शिमला वार्ताओं में हमने पाकिस्तान के सामने खुद ही युद्धविराम रेखा को अंतरराष्ट्रीय सीमा के रूप में मानने की पेशकश रखी। चूंकि देश इस बंटवारे पर सहमत न होता इसलिए युद्ध विराम रेखा का नाम बदल कर ‘लाइन आफ एक्चुअल कंट्रोल’ देते हुए इस ओर इशारा किया गया। हारे हुए भुट्टो शिमला से हमें मूर्ख बनाकर चले गए।। दूसरी ओर हमने मान लिया कि कश्मीर समस्या का समाधान हो चुका है। जब पाकिस्तान प्रायोजित खालिस्तानी और कश्मीरी आतंकवादी अभियान चले तब हम समझ पाए कि हम कितने बड़े मूर्ख सिद्ध हुए हंै। मुशर्रफ फामरूला जिसकी कभी चर्चा हुई थी, इसी विभाजन के विचार को पाकिस्तान के पक्ष में ले जाता है। उन्होंने कश्मीर को पांच क्षेत्रों में चिन्हित किया था। जाहिर है कि हिंदू-बौद्ध बहुल जम्मू व लद्दाख से उनका कोई वास्ता न होता। पाक अधिकृत कश्मीर उनके पास है ही। शेष कश्मीर घाटी व डोडा क्षेत्र को वह समझौते के तहत पाकिस्तान के लिए चाहते रहे होंगे। यह प्रस्ताव मूलत: कश्मीर के धार्मिक विभाजन की बात करता है।1पाकिस्तान ने अधिकृत कश्मीर का 2000 वर्ग किमी क्षेत्र सन् 1973 में चीन के हवाले कर दिया। जाहिर है कश्मीर उनका सार्वभौम भाग नहीं, बल्कि एक उपनिवेश है, जिसे जरूरत पड़ने पर पड़ोसी को बांटा जा सकता है। कश्मीर का एक भाग चीन को दे दिया जाना कश्मीरी अलगाववादियों के लिए कभी मुद्दा नहीं बना। दूसरी ओर हमारी कश्मीरी नीति कभी असलियत की जमीन पर नहीं चली। हमारे नेताओं ने आसान रास्तों की खोज में मुश्किलें बढ़ाई ही हैं। कश्मीर पर हमारी यथास्थितिवादी नीति ही मुख्य समस्या है। बहस और वार्ताओं ने क्या कभी कोई समाधान दिया है? चुनाव आने को हैं। देखना है कि राजनीतिक दलों के घोषणापत्रों में कश्मीर का क्या जिक्र होता है। कश्मीर अगर अभिन्न अंग है तो समाधान की राह का मुकाम सिर्फ कश्मीर का एकीकरण ही तो है। नेहरू ने कश्मीर का समाधान अगली पीढ़ियों के जिम्मे छोड़ दिया। सत्ता को ही अपना परम लक्ष्य मानने वाली अगली पीढ़ियों ने कश्मीर की समस्या को लगातार बिगड़ते हुए देखा है। हमारे पास समाधान की कोई अपनी सोच नहीं है, सिर्फ दूसरों के सुझाए फार्मूले भर हैं।
(लेखक पूर्व सैन्य अधिकारी हैं

1 comment:

  1. The best casino sites with slot games with bonuses
    ‎The Best Casino 의왕 출장안마 Sites · ‎Slot Sites · ‎Poker 김제 출장안마 · ‎Casino 익산 출장안마 Sites With 양주 출장샵 Best Bonuses · ‎Mobile Casino · ‎Best Deposit Bonuses 제천 출장안마 · ‎Casino Sites With Best Mobile Apps

    ReplyDelete