Monday, March 12, 2012

सदमे जैसी एक पराजय

३ मार्च को दैनिक जागरण में प्रकाशित 
उत्तराखंड में भुवन चंद्र खंडूड़ी के हार जाने की बात एक सदमे जैसी है। बात वर्ष 1991 की है जब जनरल खंडूड़ी पौड़ी में सांसद के उम्मीदवार हुए थे। उनके राजनीतिक सफर की शुरुआत में मैं वहीं कोटद्वार में एसडीएम था। कोटद्वार एक खूबसूरत सा कस्बा है। दोनों ओर से नेशनल पाकोर्ं के वनों से घिरा हुआ है। मैं भी शार्ट सर्विस कमीशन के बाद सेना से राज्य सेवा में आया था। जनरल खंडूड़ी के सामने हमारा व्यवहार प्रशासनिक अधिकारी के रूप में न होकर एक जूनियर फौजी अफसर जैसा होता था। फौजी स्टाइल में डांटें भी मिला करती थीं। उन दिनों वह राजनीति के रास्ते सीख रहे थे। फौजी कलेवर से राजनीति में अवतार आसान नहीं होता। साफगोई की फौजी आदतें राजनीति में बड़ी मुश्किलें पैदा करती हैं।
मेरे कोटद्वार में ज्वाइन करने के ही दिन लक्ष्मणझूला के पीछे पहाड़ पर स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर क्षेत्र में ऐन सावन के सोमवार के दिन बादल फटने से बड़ा हादसा हो गया। हादसे में लगभग 250 तीर्थयात्रियों एवं ग्रामवासियों की मृत्यु हो गई, एक गांव बह जाने से चारों ओर पथरीला मलबा फैल गया। रास्ते बंद हो गए थे। बिजनौरऋषिकेश के रास्ते से होते हुए झूला पुल पार कर लक्ष्मणझूला पहुंचने पर पता लगा कि कितना बड़ा हादसा हो चुका है। थोड़ी देर में ही लक्ष्मणझूला थाना पत्रकारों, नेताओं से भर गया। सहायता कार्य तत्काल प्रारंभ होना था, बहुत से लोग गुमशुदा थे। तहरीरें लिखने पर विवाद हो रहे थे। अव्यवस्था का आलम था। राशन, कपड़े, ईधन, दवाइयां, एंबुलेंस और सहायता धनराशि की तुरंत जरूरत थी। सब विभागों को सूचनाएं, टेलीग्राम भेजने के बाद हम लोग ध्वस्त हो चुके पहाड़ी रास्ते से चढ़ते हुए घटनास्थल की ओर रवाना हो गए। फिर सहायता कार्यो के सिलसिले में कई दिनों तक उन्हीं पहाड़ों में ही रह गए। रोज बरसात हो रही थी। कपड़े नहीं थे। उन्हीं कपड़ों में कई दिन काटने पड़े। पहाड़ों में ही सुरेंद्र सिंह नेगी से मुलाकात हुई। वह रिलीफ कार्य में प्रशासन की सहयोगी भूमिका निभा रहे थे। उनमें किसी पेशेवर नेता के लटके झटके नहीं थे। आश्रयहीन ग्रामवासियों के लिए हम लोगों ने कई आश्रमों को अधिग्रहीत किया। पर्वतीय विकास के कैबिनेट मंत्री श्री बरफिया लाल जुआठा भी आए। तब तक हादसे को लेकर राजनीतिक खेमेबंदी गरमा गई थी। नेताओं, मंत्रियों की फजीहत थी। नेता लोग ध्वस्त मलबे पर फावड़ा चलाते हुए अपनी फोटो खिंचाकर सत्ता पक्ष को कठघरे में खड़ा कर रहे थे। प्रारंभिक हमलों के बाद प्रेस को कोई निगेटिव समाचार नहीं मिल रहा था। हम लोगों ने प्रभावित ग्रामों को मैदानी क्षेत्र में स्थानांतरित करने की चर्चा प्रारंभ कर मीडिया का फोकस दूसरी दिशा में मोड़ दिया। इसी समय तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव का लक्ष्मणझूला आगमन हुआ। अधिकांश रिलीफ बांटी जा चुकी थी। नीलकंठ महादेव की सड़क नई बनाने की पूरी तैयारी हो चुकी थी। वन क्षेत्र से वैकल्पिक पैदल मार्ग का भी सर्वे हो चुका था।
इतने बड़े हादसे के 10 दिवस बाद कहीं कोई असंतुष्ट व्यक्ति नहीं था। विरोधी पार्टियों को बहुत चिंता सता रही थी कि कहीं मुख्यमंत्री का दौरा सफल न हो जाए। सुरेंद्र सिंह नेगी ने आयोजन का बीड़ा उठा रखा था। हादसे से प्रभावित ग्रामवासी उनके परिवार पहली कतारों में बैठाए गए। मुख्यमंत्री के स्वागत में सुरेंद्र सिंह नेगी ने पर्वतीय अंचल के विकास की बात कही। मुख्यमंत्री ने ग्रामवासियों से बात की। प्रस्तुत की गई संपूर्ण योजना को स्वीकृत किया और कहा कि कार्य एक सप्ताह में प्रारंभ हो जाए। रमेश पोखरियाल निशंक उस समय पत्रकार थे। वे कृशकाय, मुस्कराते रहने वाले व्यक्ति थे। पत्रकार वार्ता भी ठीक चल रही थी कि अचानक निशंक ने लगभग चीखते हुए उत्तेजित होकर मुख्यमंत्री को लक्ष्य करते हुए सवाल पूछा कि आप इतने विलंब से क्यों आए? स्पष्ट था कि राजनीतिक एजेंडे के तहत सवाल पूछे जा रहे हैं। पर्वतीय विकास मंत्री तो तत्काल आए थे। मुख्यमंत्री ने संयत भाषा में जवाब दिया। सुरेंद्र सिंह नेगी ने दखल दिया, मुख्यमंत्री के निर्देश पर इस क्षेत्र की विकास की योजना बनाई जा रही है। कुछ और शोर मचाकर प्रेस वार्ता समाप्त हुई। सुरेंद्र सिंह नेगी ने कैंपों में भ्रमण कराया। हैलीपैड पर जाते वक्त दो एक मकानों से काले झंडे जरूर दिखाए गए। बाद में सब कुछ सामान्य हो गया। प्रेस और नेताओं को निराशा हुई कि कुछ खास समाचार नहीं बन पाया। उन्हें यह देखकर और कोफ्त हुई कि पीडब्ल्यूडी की गाड़ियां सड़क के लिए सामान गिराने भी लगी थीं। लक्ष्मणझूला सुरेंद्र सिंह नेगी का राजनीतिक क्षेत्र नहीं था, फिर भी उनकी पहल ने अच्छी भूमिका अदा की। बाद में कोटद्वार के कार्यकाल में मैंने उन्हें जमीनी हकीकत से जुड़ा जुझारू एवं विकास की सोच वाले नेता के रूप में देखा।
मेरे लिए वे जैसे पर्वतों, नदियों, जंगलों में घूमने फिरने के दिन थे। विकास की बातें थीं, लेकिन उस समय उत्तराखंड राज्य बनना इतने निकट नहीं दिख रहा था। 1992 के चुनावों में सुरेंद्र नेगी थोड़े अंतर से हार गए थे। निशंक पौड़ी से चुनाव जीते। स्थानांतरण के बाद गढ़वाल ओझल जरूर हो गया, लेकिन स्मृतियों में बना रहा। खंडूड़ी ने केंद्र सरकार में ऊंचा मुकाम हासिल किया। सुरेंद्र नेगी भी बाद में किसी वक्त मंत्री बने, फिर हट गए। जनरल खंडूड़ी के पूर्व सैन्य अधिकारी होने के कारण गर्व होता था। आज जब जनरल खंडूड़ी सुरेंद्र सिंह नेगी से चुनाव हार गए हैं तो समझ में नहीं आता कि इसे कैसे लिया जाए। कोटद्वार से आलोक नेगी ने बताया जरूर था कि खंडूड़ी हार जाएंगे, मैंने भरोसा नहीं किया। व्यापार का नियम है कि ग्राहक हमेशा सही होता है, उसी तरह राजनीति में जनता हमेशा सही होती है। इस नियम के सामने नेता बेबस हो जाते हैं। जनता का आदेश शिरोधार्य करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

4 comments:

  1. memorious lekh ! Aapne sach bola ki व्यापार का नियम है कि ग्राहक हमेशा सही होता है, उसी तरह राजनीति में जनता हमेशा सही होती है। इस नियम के सामने नेता बेबस हो जाते हैं। जनता का आदेश शिरोधार्य करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।

    Aapki kalam mei bahut dam hai Bhaiya !

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  2. Aapne bilkul sahi likha sir...Grahak ka ek aur CUST O MAR...KAST AUR MAR BHI HAI
    wo bhi rajneeti me fit hai..akhir me janta hi marti hai.
    Grahak bhagwan hota hai...aisa Mahatma Gandhi ji ne bhi khaa, lekin rajneeti me
    Janta ...janta reh jati hai aur Neta VIP Ho jata hai.

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  3. khandoori ji se mera bhi milna hua . 1999-2000 me main dainik jagran dehradoon ka isthaniy sampadak tha. vo mere office aaye the . mujhase aupcharik bhint karne halanki ve malik sampadak narendra mohan ke nikat bhi the aur sampadak ji unka smman bhi karte the. main bhi kafi prabhavit tha. unko dekha mujhe apne kanpur ke cap. jagatvir singh dron ji ki yad aa jati thi. aur mujhe lagta tha ki fauji hamesha fauji hi rahata hai aur rajnit faujion ke liye nahin maujon ke liye hoti hai.

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  4. ismein bhai aap kehna kya chahte the ye hi n isamjh paaye .....Khanduri ji ka naam to last main hi aaya ki haar gye wo !! kya tha ismein ye to BAdal fatne ki kahani thi !!

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